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नदियों का संकट हमारा संकट

sanjay
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नदियों का महत्व हमारे धर्म से भी है। कुछ नदियों का उल्लेख पुराणों में मिलता है। यहां तक कि मृत्यु के समय भी लोग गंगाजल का इस्तेमाल करते है। इसके बाद भी हम इसके महत्व को नहीं समझ पा रहे है। नदियों को लगातार प्रदूषित किया जा रहा है। इससे जीवनदायिनी नदियों संकट उत्पन्न हो गया है। अब इसे साफ करना मुश्किल हो रहा है। इसके इतर नदियों पर तटबंधों के कारण ही बिहार में बाढ़ की समस्या बढ़ी है। इससे समाज में विभिन्न तरह की विकृतियां आई है। इन विकृतियों से नीति निर्धारण करने वाले लोग पर अपरिचित है। अधिकांश जल विशेषज्ञों का मानना है कि नदियों पर बननेवाले बड़े-बड़े बांधों से लोगों को फायदा नहीं हो रहा है। यह बांध अंतत: घाटे का सौदा है। इससे नदी किनारे रहने वाले लोगों का संकट बढ़ा है। इससे विस्थापन की समस्या बढ़ी है। सरकार भी इस समस्या का हल नहीं ढूढ़ नहीं पा रही है। इस जीवन रेखा को बचाने के लिए सरकारों ने कई योजनाएं तैयार की। लेकिन इन योजनाओं का लाभ न तो आमलोगों को मिला और न ही नदियों को। इसके सबसे बढ़ी वजह यह रही कि नदियों की प्रकृति समझे बिना ही योजनाएं तैयार कर ली गई। हमें नदियों को अनावश्यक दोहन से बचाना होगा,तभी हमारा जीवन बचेगा। गंगा की जीवंतता को बरकारार रखने के लिए,हमें प्रतिदिन इसके साफ सफाई का ख्याल रखना होगा। आज इसकी सबसे बड़ी समस्या कटाव है। कटाव के कारण सैंकड़ों गांवों का इतिहास बदल गया। हजारों एकड़ भूमि बर्बाद हो गई। इसको मियंड्रिग भी कहा जाता है। संगम के सिद्धांत को समझे बिना ही अब बाढ़ से निजात के लिए नदियों को जोडऩे की बात हो रही है। वह भी खतरनाक साबित होगा। नदियों को हम तभी जोड़ सकते है जब हम उसके संगम के सिद्धांत को समझे। इस तरह की योजनाओं को बनाने के पहले इसके मॉडल पर चर्चा होनी चाहिए। बहस के बाद ही बेहतर परिणाम आ सकता है। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि हम सर्वे कर लोगों की राय जाने। इससे संबंधित डेटा एकत्रित कर उसका अध्ययन करें। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि नदियों की व्यवस्था समझने के लिए हमारे पास कोई संस्थान नहीं है। चीन ने नदियों की व्यवस्था समझने के लिए तीन-तीन विश्वविद्यालय खोल रखी है। नदियों का अपना विज्ञान है। जिस पर भारत में काफी वर्षो से काम हो रहा है। लेकिन नदी विज्ञान की ज्यादातर बहसें बांधों,उनके उपयोग और विस्थपन पर ही केंन्द्रित है। जबकि नदियों के विज्ञान का दायरा काफी व्यापक है। इसमें वनस्पतियों से लेकर जलीय जीव जंतु तक शामिल है। जब तक हमारी सोच नहीं बदलेगी,तब तक संकट कायम रहेगा। यह समझाना होगा कि नदियों का संकट हमारा संकट। तभी इस समस्या का समाधान हो सकता है।

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