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आए दिन आत्महत्या की घटनाएं होते ही रहती है। यदि इन आंकड़ों का संग्रहण ठीक से किया जाए तो इसकी स्थिति भयावह हो सकती है। पूरे विश्व के आंकड़ों पर यदि गौड़ किया जाए तो आठ लाख लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या करते है। इस संख्या में भारत का फीसद 17 है। विश्व के सर्वाधिक आत्महत्या चीन में की जाती है। भारत के यदि विभिन्न राज्यों पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि दक्षिण राज्यों में आत्महत्या की घटनाएं अधिक होती है। देश में पांडीचेरी का इस मामले में प्रथम स्थान है। बिहार अंतिक पायदान पर है। पांडीचेरी में एक लाख की आबादी पर 36.8 फीसद लोग आत्महत्या करते है,जबकि बिहार में 0.8 फीसद लोग ही आत्महत्या करते है।
:आत्महत्या के तरीके :
यदि आत्महत्याओं के तरीकों का विश्लेषण किया जाए तो पाएंगे कि जहर खाने से 33 फीसद,फांसी लगाकर 31 फीसद और स्वंय की बली चढ़ाकर 9 फीसद लोग आत्महत्या करते है। इसका यदि लिंग के आधार पर विश्लेषण करें तो पाएंगे कि यह अनुपात मर्द और औरत के बीच 4:3 है। 46 फीसद आत्महत्या के पीछे का कारण घरेलू विवाद होता है। आज आत्महत्या पर बहुत कम साहित्य उपलब्ध है। इस मामले को लेकर शोध भी नहीं के बराबर हो रहा है। समाजशास्त्र में इस विषय के के संस्थापकों में से एक इमाइल दुर्खीम ही हैं। मोरसेलि और फ्रेंक आदि के मत में आत्महत्या की दर कम करने का सर्वोत्तम साधन शिक्षा हो सकती है। आज के दौर में प्राचीन तौर -तरीके को लागू कर पाना संभव नहीं है। मनोरंजन के साधन भी दिन व दिन समाप्त होते जा रहे है। इसे रोकने के लिए बेहतर होगा कि योग और संगीत की शिक्षा को बढ़वा दिया जाए। स्वस्थ्य मनोरंजन के साधनों को बढ़ाया जाए। इन उपायों को कर हम आत्महत्या करनेवालों की संख्या को घटा सकते है।
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