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23 अक्टूबर 2017 को आंध्रप्रदेश के विशाखापत्तनम में रेलवे स्टेशन के नजदीक फुटपाथ पर सरेआम एक महिला के साथ नशे में धुत युवक ने बलात्कार करने की कोशिश की। घटना जितनी शर्मनाक थी, उससे कहीं अधिक घटिया बात यह रही कि फुटपाथ और सड़क के किनारे स्थित बाजार में मौजूद सभी लोग घटना के मूकदर्शक बने रहे। और हद तो तब हो गई, जब एक इंसान महिला की मदद करने के बजाए पूरी घटना का वीडियो बनाता रहा। महिलाओं से जुड़ा मामला था, लिहाजा वीडियो वायरल होना भी स्वाभाविक था। वीडियो के वायरल होने के बाद समाचारों की सुर्खियां बनते इस घटना को देर नहीं लगी, लेकिन सवाल यह उठता है कि घटना के 10 दिन बीतने के बाद भी पूरे मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इतना ही नहीं राजनीतिक पार्टियां, महिला संगठन और ह्यूमन राइट््स कमीशन वाले सभी को सांप सूंघ गया हैै। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तमाम महिलाओं से जुड़े कानून और अभियान का क्या होगा। सरकार आए दिन हर सभा और समारोह में महिलाओं के विकास, सुरक्षा, भागीदारी को लेकर न जानें कितनी बातें करती हैं, घोषणाएं भी होती हैं। पर जब ऐसी घटना सामने आती है तो सब धरी की धरी रह जाती है। पर, इन घटनाओं को रोके कौन? क्योंकि यह कोई पहली घटना नहीं है। घटनाएं घटती हैं, जांच और कार्रवाई की बात सत्तारूढ़ी दल, संबंधित पुलिस पदाधिकारी भी कहते हैं, लेकिन फिर ऐसी शर्मनाक घटनाएं दोहराई जाती हैं। ऐसे में हर सरकार चाहे वह केंद्र की हो या राज्य सरकारें उनके द्वारा चलाए गए विभिन्न महिला सुरक्षा संबंधित कानून और अभियान का क्या मतलब। जब एक महिला सड़क पर ही सुरक्षित नहीं, कानून का भय दरिंदो में नहीं है।
ये हैं सरकार की कुछ महिलाओं से जुड़े कानून:
1. महिलाओं का अश्लील प्रस्तुतीकरण निरोधक कानून- 1986
2. दहेज निरोधक कानून
3. सती प्रथा अधिनियम- 1987
4. बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006
5. राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम- 1990 अन्य
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