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कई पौराणिक आख्यानों को आंचल में समेटे बिहार का जमुई जिला सामाजिक कुरीतियों के मामले में भी अव्वल है। देश में बाल विवाह के मामले में राजस्थान का सोभाय मान सिंह जिला सर्वश्रेष्ठ है। दूसरा नंबर जमुई का ही आता है। इसका मुख्य कारण गरीबी और बेरोजगारी है। जमुई के अधिकांश गरीब जंगलों पर ही निर्भर है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र के कारण यहां बेटियों को घरों में रखना लोग ज्यादा असुरक्षित समझते है।
सर्वेक्षण में हुआ खुलासा
केन्द्र सरकार व राष्ट्रीय स्तर की स्वयंसेवी संस्था ममता के सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है कि जमुई में 83 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं। इसके बाद इस गंभीर सामाजिक कुरीति के विरुद्ध जमुई के सुदूर ग्रामीण इलाके में स्थानीय प्रशासन व ममता के सहयोग से बाल विवाह रोकथाम को लेकर जागरूकता अभियान चलाया गया। हालांकि अब यह अभियान की गति मंद पड़ गई है।
10वीं में पढऩे वाली 15 फीसद बच्चियों की हो जाती है शादी
जमुई जिले में 10वीं कक्षा में पढऩे वाली 15 फीसद छात्राओं की शादी हो जाती है। अधिकांश प्लस टू स्कूलों में यह देखा गया कि 10वीं से 12वीं कक्षा की नामांकित छात्राओं में 15 फीसद शादीशुदा हैं। जाहिर है, 18 वर्ष के पूर्व ही इन बच्चियों की शादी परिवारवाले कर देते हैं। नतीजा भी सामने है। जमुई में मातृत्व मृत्यु दर भी राज्य के आंकड़े से अधिक है। जिला हेल्थ सर्वे के मुताबिक कम उम्र में शादी और मां बनना मृत्यु का एक कारण है। आंकड़े को देखने से यह पता चलता है कि प्रसव के दौरान एक लाख की आबादी पर यहां 251 महिलाओं की मौजूदगी है, जबकि राज्य का आंकडा 208 है। इसी प्रकार 63 फीसद महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं।
सामूहिक बाल विवाह से सुर्खियों में आया जमुई
वर्ष 2013 में जिले के मलयपुर गांव के बसफोड़ जाति के मुहल्ले में एक साथ छह बच्चियों की शादी की गई। रोचक पहलू यह है कि शादी के बाद भी सभी बच्चियां अपनी मां के गोद में थीं। मीडिया में खबर आने के बाद प्रशासन की नींद खुली। एसडीओ ने बाल विवाह रोकथाम के तहत बच्चियों के परिजनों पर कार्रवाई की कवायद शुरू की। बाद में एक शर्तनामे के साथ कार्रवाई पर रोक लगा दी गई।
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