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हमसे तो अच्छे आदिवासी, एक रुपये में शादी

sanjay
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जल, जंगल और जमीन से जुड़ा है वनवासी पुत्रों के जीवन का सरोकार। प्रकृति के सहचर आदिवासियों का जंगल से राग सभ्यता के दिनों से लेकर आज इस आधुनिक काल तक है। उन्हीं आदिम मूल्यों के बूते अपने हिस्से की रोटी खाने और ईमानदारी के प्राकृतिक वैभव उनके भरोसे और उल्लास की पूंजी है। वह संतुष्ट है, शालीन है। छल-प्रपंच से परे पसीने की कीमत पर जीवन राग इब्तिदा-ए-सफर पर रोज निकलते हैं और अपनी जरूरत भर की व्यवस्था कर संतुष्ट हो लेते हैं। मोरंगी माटी की सोंधी सुवास। लाल गुलोची फूलों मादक सुगंध और नदी झरनों का शीतल जल इनके लिए प्रर्याप्त है। इस समुदाय सबसे उपर अपने आत्मसम्मान को मानता है। आदिवासियों ने इस मुद्दे पर कभी भी किसी से समझौता करना नहीं सीखा है। बिरसा-मुंडा, सिदो-कान्हू, तिलका मांझी से लेकर अमर शहीद अलबर्ट एक्का आदि जितने सपूत आदिवासी समुदाय में हुए, सबों ने अपने प्राणपन से अपने स्वाभिमान को बरकरार रखा है। इनलोगों ने कभी स्वार्थ के हाथों अपने मूल्यों को गिरवी नहीं रखा है। अपनी माटी, अपनी संस्कृति व अपनी भाषा के दर्प और अपनी आदिम सदाशयता में अनूठे उदाहरण गढ़ते आदिवासियों के कई प्रतिभाशाली युवक-युवतियों ने अपनी मेधा के बूते राष्ट्रीय स्तर पर गढऩे की ओर अग्रसर है। इनकी सक्रियता हर क्षेत्र में बढ़ रही हैं। सामाजिक एकजुटता का बेहर उदाहरण इस समाज में देखने को मिल सकता है।
आमधारणा है कि जहां गरीबी है,वहां बाल विवाह को बढ़वा मिल रहा है। लेकिन आदिवासी समाज के लिए यह धारणा गलत है। आज भी इस समाज में शादी के लिए दहेज के रूप में एक रुपया लिया जाता है। सामूहिक भोज की प्रथा भी नहीं है। अधिकांश शादियां मंदिरों में होती है। शिवरात्रि के बाद ही आदिवासी समाज में शादियां होती हैं।
क्या कहते है जिला पार्षद
जमुई जिले के चकाई से जिला पार्षद राम लखन मुर्मू का कहना है कि बाल विवाह को लेकर आदिवासी समाज पहले से ही सजग है। आज भी आदिवासियों में बाल विवाह कम है। प्रेम विवाह में ही कुछ युवक बाल विवाह करते है,लेकिन ऐसे लोगों से समाज के लोग कोई रिश्ता नहीं रखते हैं। दहेज की समस्या इस समाज में न कभी थी और कभी रहेगी।
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