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महुआ की उम्र 21 साल है। पति ओडिशा में मजदूरी करते हैं। उसकी शादी नौ वर्ष की उम्र में ही कर दी गई और अभी वह पांच बच्चों की मां है। इतना ही नहीं, उसने अपनी दो बेटियों की शादी भी कम उम्र में ही कर दी। यह गरीबी की पराकाष्ठा है। कम उम्र में मां बनने के कारण महिलाएं कुपोषित तो रहती ही हैं, उनकी संतानें भी कुपोषित और बौनपन का शिकार होती हैं। बाल विवाह का साइड इफेक्ट भी काफी खतरनाक है। कम उम्र में शादी होने के बाद जो बच्चे जन्म ले रहे हैं, वह कुपोषण के शिकार होते हैं। इससे विकलांग बच्चों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। प्रदेश के 19 जिलों में कुपोषित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। एक सर्वेक्षण के दौरान यह बात सामने आई है कि जिन जिलों में बाल विवाह की संख्या अधिक है, वहां कुपोषण का स्तर ज्यादा है। कई बच्चे विकलांग भी पैदा हो रहे हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) 4 के आंकड़ों ने राज्य सरकार के कान खड़े कर दिये हैं।
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बाल विवाह से जुड़ा है कुपोषण
प्रदेश के बांका, जमुई, भागलपुर, सहरसा, सुपौल, बक्सर, मधुबनी, समस्तीपुर, जहानाबाद, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, लखीसराय, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, वैशाली, मधेपुरा, पूर्णिया और गोपालगंज में बाल विवाह के मामले भी अधिक हैं। मतलब साफ है। कुपोषण और बौनापन का नाता बाल विवाह से भी है।
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क्या कहता है सर्वे
इस सर्वे के मुताबिक कुपोषण तो था ही, अब नयी समस्या के रूप में बौनापन ने बिहार में पैर पैसारे हैं। दुबले-पतले, कमजोर बच्चे जन्म ले रहे हैं। अब उम्र के हिसाब से उनकी लंबाई नहीं बढ़ रही। कम उम्र में शादी, पर्याप्त पौष्टिक आहार नहीं मिल पाना आदि इसके कारण हैं। इसके कारण मां कमजोर रहती है तो शिशु कैसे स्वस्थ होगा। ऐसी माताओं के गर्भ से पैदा होनेवाले शिशु बौनपन और कुपोषण की चपेट में आ रहे हैं। एनएफएचएस-4 के आंकड़ों पर गौर करें तो बाल विवाह के मामले में सुपौल और जमुई सबसे आगे है। यहां लगभग 56.9 प्रतिशत मामले सामने आए हैं। इसके अलावा मधुबनी, समस्तीपुर, लखीसराय, सीतामढ़ी, वैशाली, मधेपुरा, सहरसा, पश्चिमी चंपारण आदि भी बाल विवाह करने वालों की संख्या अधिक है।
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